छठ महापर्व का दिया गया पहला अर्घ

 

छठ महापर्व का दिया गया   पहला अर्घ।


छठ का इतिहास वर्षो पुराना है।केवल एक पर्व ही नहीं है बल्कि महापर्व के तौर पर छठ को जाना जाता है । जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय-खाय, खनना, पहला अर्घ और फिर दूसरा अर्घ कुल चार दिन का त्यौहार है।

छठ पर्व की सुरुवात -पुराण में कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।

राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी की व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। कहते हैं ये पूजा कार्तिक शुक्ल षष्ठी को हुई थी और तभी से छठ पूजा होती है।


प्रखंड मे कई जगह शांति पुर्वक तरीके और सरकार के गाइड लाइन के तहत छठ पूजा का पहला अर्घ दिया गया। छठ माँ से श्रद्धांलु ने सबकी जीवन मे मंगल मय होने की आशीर्वाद  मांगी। इस कोरोना काल के महा बीमारी से सुरछा और बचाव की आसीर्बाद मांगी गयी। लोगो ने मास्क पहन कर व सोशल डिस्टेंस की पालन करते हुए छठ पूजा किये।

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