आदिवासियों की कहानी उन्ही के जुबानी
आदिवासियों की कहानी - उन्ही के जुबानी...
रंजीत कुमार - इचाक
एक आदिवासी गांव जहाँ आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद भी विकाश नाम के कोई चीज नहीं। विकाश के नाम पर मिला सिर्फ गरीबी, बीमारी और भुखमरी। जी हाँ मै बात कर रहा हु इचाक प्रखंड मुख्यालय से 25 किलोमीटर दूर और टाटीझरिया प्रखंड मुख्यालय से इससे भी दूर जंगलो के बिचोबीच स्थित सिझुवा आदिवासी गांव का। जो चारो ओर जंगलो से घिरा हुआ है। आदिवासियों का हाल चाल लेने पहुंचे पत्रकार अनिल राणा और रंजीत कुमार।गांव मे लगभग 50 घर है जिसमे 2000 के आसपास की आबादी वाली छोटी सी गांव। जहाँ जाने के बाद आपको अपनी बचपन याद आ जाय। वही सबकी मिट्टी के घर, वही जर्जर सड़क, वही गन्दा पानी,ग़रीबी के कारण लोगो के पास पहनने को लेकर कोई कपड़ा नहीं, किन्ही बृद्धा का पेंशन नहीं, बिजली भी सुचारु तरीके से नहीं रहती, न कोई रोजगार का सुविधा, न ही कोई अस्पताल की सुविधा है सिझुवा आदिवासी गांव मे।
क्या कहते है ग्रामीण?
लालजी मांझी का कहना है की नेता लोग सिर्फ वोट बैंक बनाने के लिये चुनाव समय एक चक्कर आ जाते है। चुनाव जितने के पहले वो तमाम वादे करके जाते है जो सारे नेता का दिनचर्या हो गया है।
जगदीश मुर्मू का कहना है की पानी की समस्या यह गांव मे ज्यादा है गर्मी के मौसम आते ही पानी की लेयर कम हो जाता है जिनसे यहां के तमाम लोग पानी की समस्या से जूझते रहते है. एक चापाकल है जहाँ हमेसा गन्दा ही पानी आता है। और वह भी दूर से लाना पड़ता है।
रामेश्वर मांझी का कहना है की बारिस के मौसम मे सांप बिच्छू का बहुत डर रहता है. कई बार यहां के लोगो को सांप भी काटा लेकिन इलाज के लिए मिलो दूर अस्पताल जाना होता है। गांव मे गाडी की भी कोई व्यवस्था नहीं। जिस कारण से लोग जल्दी नहीं जा पाते और सड़क की स्तिथि भी जर्जर है।
बिसून मांझी का कहना है की ग़रीबी तो इतना है की बच्चों को बदन ढकने के लिए कपड़े तक नहीं दे पा रहा हु।
राशन कार्ड भी गांव मे नहीं है जिनसे लोगो को राशन मिल सके। कई बार राशन के लिए फॉर्म भरे लेकिन कोई फायदा नहीं। राशन कार्ड न रहने के कारण से बृद्धा-विधवा को पेंशन नहीं दिया जाता।
समस्या से अवगत कराने के लिए विधायक अमित यादव को कई बार बुलाया गया लेकिन गरीब आदिवासी के प्रति उनका कोई ध्यान नहीं रहा। इस गांव की समस्या को लेकर लोकल मुखिया दशरथ सिंह का भी कोई खास ध्यान नहीं रहा।
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